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लेखनी प्रतियोगिता -17-Dec-2023 "हा मैं स्त्री "

 "हाँ मैं स्त्री"

मैं स्त्री... 
कभी हंसती कभी रोती, 
कभी सारे ग़मों को बांधती आंचल में... 
और माथे पर शिकन के सारे दाव पेंच खेलती, 
तू जीत को अपनी कमर पर कस लेती, 
मैं स्त्री.... 
कभी ठुठहरती कभी उलझती 
अपनी आदतों और अपने इरादों में... 
कभी सही और गलत के बीच का रास्ता निकालती, 
और आगे बढ़ती चली जाती, 
मैं स्त्री....
कभी रुन्धा गला लिया मुस्कुराती
आँखों की नमीं सभी से छुपाती... 
हाल किसी से ना उजागर कर
हृदय में उठते सैलाब को ख़ुद से ही झेलती, 
मैं स्त्री... 
कभी नदियाँ सी बल खाकर इठलाती, 
और सागर से मिलने को हिचकोले खाती... 
और अपनी तमाम हसरतों को लेकर, 
सपनों के हिंडोरे में पलकों को मुँद कर झूलती, 
मैं स्त्री...
कभी रखती चंडी का रूप, 
तो कभी ममता की मूर्ति बन आँचल लहराती... 
शिकायतों का किस्सा लिये,
खामोश अपनी वारी का इंतज़ार करती, 
मैं स्त्री... 
प्रयत्न करती ना तोड़ू मर्यादा की डोर, 
तो कभी अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को अनसुना करती,
कभी हार कर तोड़ देती सारी सीमाओं को
और निकल पड़ती है एक अंजान और अनकहे रास्ते पे, 
मैं स्त्री.... हाँ मैं स्त्री... 

मधु गुप्ता "अपराजिता"





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11 Comments

यथार्थ और वास्तविक चित्रण

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Rupesh Kumar

18-Dec-2023 06:48 PM

Nice

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Thank u so much

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Gunjan Kamal

18-Dec-2023 05:56 PM

👌👏

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